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उत्तर प्रदेश

प्रदेश सरकार की विशेष पहल : तिलोदकी गंगा के पुनरुद्धार से जागेगी आस्था

– अमावस्या का मेला अब फिर लौटेगा, तिलोदकी घाटों पर फिर गूंजेगी आस्था की पुकार

– 25 किमी लंबी पौराणिक नदी तिलोदकी के पुनर्जीवन का योगी सरकार ने लिया है संकल्प

– ऋषि रमणक की तपस्थली से निकलती है नदी, तट होंगे हरे-भरे

– पौराणिक नदी के किनारे बनेंगे ऋषियों के नाम पर वैदिक वन

– अब तक 3100 परिवारों को मिला रोजगार, 43703 मानव दिवसों का सृजन

अयोध्या। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के मार्गदर्शन में जनपद के विकास के विभिन्न क्रिया-कलापों के अंतर्गत पौराणिक नदी तिलोदकी गंगा (त्रिलोचना) का पुनरुद्धार कार्य प्रगति पर है। लोक मान्यता के अनुसार, ऋषि रमणक की तपस्या से तिलोदकी गंगा का आविर्भाव हुआ था। इसका उद्गम स्थल एवं ऋषि रमणक की तपस्थली, सोहावल बाजार से लगभग 3 किमी दक्षिण, पंडितपुर गांव के समीप स्थित है, जिसे तिलोदकी गंगा का मूल उद्गम स्थल माना जाता है।

इसी क्रम में अयोध्या जिला प्रशासन द्वारा तिलोदकी गंगा के ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व को ध्यान में रखते हुए महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) के माध्यम से इस नदी के पुनरुद्धार का कार्य प्रारंभ कराया गया है। यह नदी जनपद के तीन विकास खण्डों सोहावल, मसौधा एवं पूराबाजार तथा अयोध्या नगर निगम क्षेत्र से होकर प्रवाहित होती है और अंततः सरयू नदी में समाहित हो जाती है। नदी सोहावल विकास खंड की 5 ग्राम पंचायतों को अभिसिंचित करते हुए, मसौधा विकास खंड की 8 ग्राम पंचायतों से गुजरती है, फिर अयोध्या नगर निगम क्षेत्र में प्रवेश करती है और अंततः पूरबाजार विकास खंड की चार ग्राम पंचायतों से होते हुए सरयू में समाहित हो जाती है।

तिलोदकी गंगा का कुल विस्तार क्षेत्र 25 किलोमीटर है, जिसमें से 11 किमी क्षेत्र को सीमांकित कर कार्य पूर्ण किया जा चुका है। इस प्रक्रिया में अब तक 43703 मानव दिवसों का सृजन हुआ है और लगभग 3100 परिवारों को आजीविका का साधन प्राप्त हुआ है। पुनरुद्धार के तहत नदी के तटों पर 10,000 से अधिक पौधों का रोपण भी किया जा रहा है। धार्मिक दृष्टि से भी यह नदी अत्यंत महत्वपूर्ण है। पंडितपुर और यज्ञवेदी पर भादों मास की अमावस्या को आज भी मेला लगता है, जिसे कुशोदपाटिनी अमावस्या भी कहा जाता है। कुछ वर्षों पूर्व तक यहां के घाटों पर श्रद्धालु स्नान, दान एवं पुण्य लाभ अर्जित करते थे, किंतु नदी के लुप्त हो जाने के कारण यह परंपरा बाधित हो गई थी। अब पुनरुद्धार के उपरांत ये सभी धार्मिक आयोजन व परंपराएं पुनः जीवित हो सकेंगी।

तिलोदकी गंगा के पुनरुद्धार के उपरांत नदी के प्रवाह क्षेत्र का भूजल स्तर बढ़ जाएगा, जिससे सिंचाई की सुविधा में सुधार होगा और कृषि उत्पादन में वृद्धि होगी। इसके साथ ही, जलभराव की समस्या से ग्रामीण एवं शहरी क्षेत्रों को भी राहत मिलेगी। नदी के तटों पर पौधरोपण के माध्यम से पर्यावरण संरक्षण को भी बढ़ावा दिया जा रहा है। जनपद अयोध्या की प्राचीन धरोहरों के संरक्षण हेतु मियावाकी पद्धति से वैदिक वनों की स्थापना का कार्य भी शुरू हो चुका है।

इसके साथ ही जनपद की कुल 58 ग्राम पंचायतों में वैदिक वनों की स्थापना की जा रही है, जिनके माध्यम से लगभग 5 लाख पौधों का रोपण किया जाएगा। ये वन रामायण कालीन ऋषियो, जैसे वशिष्ठ, अगस्त्य, वाल्मीकि, अत्रि, श्रृंगी आदि एवं प्रख्यात विदुषियों जैसे गार्गी, मैत्रेयी, अरुंधती, सती सतरूपा और लोपामुद्रा के नाम पर नामित किए गए हैं। इन वनों में शीशम, अर्जुन, नीम, गहुआ, पीपल, पाकड़, बरगद, सहजन, पुत्रजीवा, नीबू, हरसिंगार आदि देशी प्रजातियों के पौधे रोपे जा रहे हैं।

मनरेगा योजना और राज्य वित्त के समन्वय से इन वैदिक वनों की स्थापना की जा रही है। योजना के तहत 2,50,000 मानव दिवसों का सृजन किया जाएगा, जिसमें से 35,000 मानव दिवसों का सृजन पहले ही किया जा चुका है। इससे अब तक 2000 परिवारों को रोजगार प्राप्त हो चुका है।

तिलोदकी गंगा का पुनरुद्धार केवल एक नदी के प्रवाह को पुनः स्थापित करने का कार्य नहीं, बल्कि यह योगी सरकार के “संस्कृति, प्रकृति और समृद्धि” के समन्वय दृष्टिकोण का जीता-जागता प्रमाण है। यह परियोजना धार्मिक पुनरुत्थान, रोजगार सृजन, जैव विविधता संरक्षण और हरित विकास का एक आदर्श।

तिलोदकी गंगा का पुनरुद्धार अयोध्या की आध्यात्मिक विरासत को पुनः स्थापित करने की दिशा में एक प्रभावशाली प्रयास है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के मार्गदर्शन में चल रहा यह कार्य न केवल धार्मिक और सांस्कृतिक चेतना को पुनर्जीवित कर रहा है, बल्कि रोजगार, पर्यावरण संरक्षण, जल प्रबंधन और जैव विविधता के क्षेत्र में भी एक मॉडल परियोजना के रूप में उभर रहा है।

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