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न्याय संहिता समानता, सद्भाव और सामाजिक न्याय के आदर्शों से बुनी गई है: प्रधानमंत्री

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने तीन नए आपराधिक कानूनों के सफल कार्यान्वयन को राष्ट्र को समर्पित किया

चंडीगढ़। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने चंडीगढ़ में परिवर्तनकारी तीन नए आपराधिक कानूनों- भारतीय न्याय संहिता, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनियम के सफल कार्यान्वयन को राष्ट्र को समर्पित किया। उपस्थित लोगों को संबोधित करते हुए पीएम मोदी ने कहा कि चंडीगढ़ की पहचान देवी मां चंडी से जुड़ी है, जो शक्ति का एक रूप है जो सत्य और न्याय की स्थापना करती है। उन्होंने कहा कि यही दर्शन भारतीय न्याय संहिता और भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता के पूरे स्वरूप का आधार है। प्रधानमंत्री ने कहा कि भारतीय संविधान की भावना से प्रेरित भारतीय न्याय संहिता का लागू होना एक शानदार क्षण है, क्योंकि राष्ट्र विकसित भारत के संकल्प के साथ आगे बढ़ने के महत्वपूर्ण मोड़ पर है और साथ ही भारतीय संविधान के 75 वर्ष पूरे होने का जश्न भी मना रहा है। उन्होंने कहा कि यह उन आदर्शों को पूरा करने की दिशा में एक ठोस प्रयास है, जो हमारे संविधान ने देश के नागरिकों के लिए परिकल्पित किए हैं। पीएम मोदी ने कहा कि उन्होंने अभी-अभी इसका लाइव प्रदर्शन करके इसकी एक झलक देखी है कि कानूनों को कैसे लागू किया जाएगा। प्रधानमंत्री ने लोगों से कानूनों का लाइव डेमो देखने का आग्रह किया। उन्होंने तीन नए आपराधिक कानूनों के सफल क्रियान्वयन के अवसर पर सभी नागरिकों को हार्दिक बधाई दी। उन्होंने चंडीगढ़ प्रशासन के सभी हितधारकों को भी बधाई दी।

प्रधानमंत्री ने इस बात पर जोर देते हुए कहा कि देश की नई न्याय संहिता बनाने की प्रक्रिया दस्तावेज जितनी ही व्यापक रही है। उन्होंने कहा कि इसमें देश के कई महान संविधान विशेषज्ञों और कानूनी विशेषज्ञों की कड़ी मेहनत शामिल है। पीएम मोदी ने कहा कि गृह मंत्रालय ने जनवरी 2020 में इसके लिए सुझाव मांगे थे। उन्होंने कहा कि देश के कई उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीशों के समर्थन के साथ-साथ सर्वोच्च न्यायालय के कई मुख्य न्यायाधीशों के सुझाव भी मिले थे। उन्होंने कहा कि सर्वोच्च न्यायालय, 16 उच्च न्यायालयों, न्यायिक अकादमियों, विधि संस्थानों, नागरिक समाज संगठनों और कई बुद्धिजीवियों सहित कई हितधारक बहस और चर्चा में शामिल थे और उन्होंने नई संहिताओं के लिए अपने सुझाव और विचार देने के लिए वर्षों के अपने व्यापक अनुभव का इस्तेमाल किया। उन्होंने यह भी कहा कि आज की आधुनिक दुनिया में राष्ट्र की जरूरतों पर विचार-विमर्श किया गया। श्री मोदी ने कहा कि आजादी के सात दशकों में न्यायिक प्रणाली के सामने आने वाली चुनौतियों पर गहन मंथन हुआ और साथ ही प्रत्येक कानून के व्यावहारिक पहलू पर भी गौर किया गया। उन्होंने कहा कि न्याय संहिता के भविष्य के पहलू पर भी काम किया गया। उन्होंने कहा कि इन सभी गहन प्रयासों ने हमें न्याय संहिता का वर्तमान स्वरूप दिया है। श्री मोदी ने नई न्याय संहिता के लिए उनके ठोस प्रयासों के लिए माननीय सर्वोच्च न्यायालय, उच्च न्यायालयों – विशेष रूप से पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय, और सभी माननीय न्यायाधीशों के प्रति आभार व्यक्त किया। उन्होंने आगे आकर इसकी जिम्मेदारी लेने के लिए विधिक समुदाय को भी धन्यवाद दिया। श्री मोदी ने विश्वास व्यक्त करते हुए कहा कि सभी के सहयोग से बनी यह भारतीय न्याय संहिता भारत की न्यायिक यात्रा में मील का पत्थर साबित होगी।

पीएम मोदी ने कहा कि स्वतंत्रता-पूर्व के कालखंड में अंग्रेजों द्वारा बनाए गए आपराधिक कानूनों को उत्पीड़न और शोषण के हथियार के रूप में देखा जाता था। उन्होंने कहा कि 1857 में देश के पहले बड़े स्वतंत्रता संग्राम के परिणामस्वरूप 1860 में भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) लागू की गई थी। उन्होंने कहा कि कुछ वर्षों बाद भारतीय साक्ष्य अधिनियम लागू किया गया और फिर सीआरपीसी की पहली संरचना अस्तित्व में आई। श्री मोदी ने कहा कि इन कानूनों की अवधारणा के साथ-साथ इसका उद्देश्य भारतीयों को दंडित करना और उन्हें गुलाम बनाना था। उन्होंने कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि स्वतंत्रता के दशकों बाद भी हमारे कानून उसी दंड संहिता और दंडात्मक मानसिकता के इर्द-गिर्द घूमते हैं। उन्होंने कहा कि समय-समय पर कानूनों में बदलाव के बावजूद उनकी मूल विशेषता कायम रही। श्री मोदी ने इस बात पर जोर देते हुए कहा कि गुलामी की इस मानसिकता ने भारत की प्रगति को काफी हद तक प्रभावित किया है।

प्रधानमंत्री ने इस बात पर जोर दिया कि देश को अब औपनिवेशिक मानसिकता से बाहर आना चाहिए। उन्होंने आग्रह करते हुए कहा कि राष्ट्र की शक्ति का उपयोग राष्ट्र निर्माण में किया जाना चाहिए, जिसके लिए राष्ट्रीय सोच की आवश्यकता है। उन्होंने याद दिलाया कि इस वर्ष स्वतंत्रता दिवस के भाषण के दौरान उन्होंने देश को गुलामी की मानसिकता से मुक्ति दिलाने का संकल्प लिया था। श्री मोदी ने कहा कि नई न्याय संहिता के कार्यान्वयन के साथ, देश ने उस दिशा में एक और कदम आगे बढ़ाया है। उन्होंने कहा कि न्याय संहिता ‘जनता का, जनता द्वारा, जनता के लिए’ की भावना को मजबूत कर रही है, जो लोकतंत्र का आधार है।

प्रधानमंत्री ने कहा कि किसी भी देश की ताकत उसके नागरिक होते हैं और देश का कानून नागरिकों की ताकत है। पीएम मोदी ने कहा कि इससे लोगों को कानून का पालन करने के लिए प्रोत्साहन मिलेगा और कानून के प्रति नागरिकों की यह निष्ठा देश की बहुत बड़ी संपत्ति है। उन्होंने कहा कि यह हम सबकी जिम्मेदारी है कि नागरिकों का भरोसा टूटने न पाए। श्री मोदी ने हर विभाग, हर एजेंसी, हर अधिकारी और हर पुलिसकर्मी से न्याय संहिता के नए प्रावधानों को जानने और उनकी भावना को समझने का आग्रह किया। उन्होंने राज्य सरकारों से आग्रह किया कि वे न्याय संहिता को प्रभावी ढंग से लागू करने के लिए सक्रिय रूप से काम करें, ताकि इसका असर जमीन पर दिखाई दे। उन्होंने नागरिकों से इन नए अधिकारों के बारे में यथासंभव जागरूक होने का भी आग्रह किया। प्रधानमंत्री ने इसके लिए मिलकर काम करने की जरूरत पर जोर देते हुए कहा कि न्याय संहिता को जितने प्रभावी ढंग से लागू किया जाएगा, हम देश को बेहतर और उज्जवल भविष्य दे पाएंगे, जो हमारे बच्चों के जीवन और हमारी सेवा संतुष्टि को निर्धारित करेगा। अपने भाषण का समापन करते हुए श्री मोदी ने विश्वास व्यक्त किया कि हम सभी इस दिशा में मिलकर काम करेंगे और राष्ट्र निर्माण में अपनी भूमिका बढ़ाएंगे।

इस कार्यक्रम में पंजाब के राज्यपाल और केंद्र शासित प्रदेश चंडीगढ़ के प्रशासक श्री गुलाब चंद कटारिया, केंद्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री अमित शाह और राज्यसभा सांसद सतनाम सिंह संधू सहित अन्य गणमान्य व्यक्ति उपस्थित थे।

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