उपराष्ट्रपति ने कर्नाटक के श्री क्षेत्र धर्मस्थल में द क्यू कॉम्प्लेक्स और ज्ञानदीप कार्यक्रम 2024-25 का उद्घाटन किया
नई दिल्ली। उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने कहा, “वीआईपी संस्कृति एक विचलन है, समानता के नजरिए से देखा जाए तो यह एक अतिक्रमण है। समाज में इसका कोई स्थान नहीं होना चाहिए, धार्मिक स्थलों में तो बिल्कुल भी नहीं। वीआईपी दर्शन का विचार ही ईश्वर के विरुद्ध है। इसे समाप्त कर देना चाहिए।” धार्मिक संस्थानों में समानता का आह्वान करते हुए उन्होंने कहा, “धार्मिक संस्थान समानता के प्रतीक हैं, क्योंकि सर्वशक्तिमान ईश्वर के समक्ष कोई भी व्यक्ति बड़ा नहीं है। हमें धार्मिक संस्थानों में समानता के विचार को फिर से स्थापित करना चाहिए। मुझे उम्मीद है कि यह धर्मस्थल, जिसका नेतृत्व अपूर्व विद्वान व्यक्ति कर रहे हैं, समतावाद का उदाहरण बनेगा और हमें हमेशा वीआईपी संस्कृति को दूर करना चाहिए।”
कर्नाटक के श्री क्षेत्र धर्मस्थल में क्यू कॉम्प्लेक्स और ज्ञानदीप का उद्घाटन करने के बाद उपस्थित लोगों को संबोधित करते हुए उपराष्ट्रपति ने राजनेताओं से कटुता से ऊपर उठने का आग्रह किया। उन्होंने कहा, “राजनीति कटुता के लिए नहीं है। राजनेताओं की अलग-अलग विचारधाराएं होंगी। होनी भी चाहिए। भारत अपनी विविधता के लिए जाना जाता है, क्योंकि विविधता एकता में समाहित हो जाती है। लेकिन राजनीतिक कटुता क्यों होनी चाहिए? राजनीति का उद्देश्य केवल सत्ता नहीं होना चाहिए। सत्ता महत्वपूर्ण है। इसका उद्देश्य समाज की सेवा करना और राष्ट्र की सेवा करना होना चाहिए।”
इसे विस्तार देते हुए, उपराष्ट्रपति ने कहा, “देश में अब गहरी राजनीतिक विभाजनकारी स्थिति पर विचार करने, इसे प्रतिबिंबित करने और इसे सुनिश्चित करने की तत्काल आवश्यकता है। देश में राजनीतिक माहौल जलवायु परिवर्तन की तरह ही एक चुनौती है। हमें इसे सुसंगत बनाने के लिए काम करना होगा। हम अपने दीर्घकालिक लाभों को नजरअंदाज नहीं कर सकते। देश में राजनीतिक तापमान को तर्कसंगत व्यक्तियों द्वारा नियंत्रित करने की आवश्यकता है। हमारे सभी रुख को एक विचार-राष्ट्र की भलाई-द्वारा दृढ़तापूर्वक निर्धारित और निर्मल किया जाना चाहिए। हमें सभी स्थितियों में राष्ट्र को सर्वोपरि रखने का प्रयास करना चाहिए। क्योंकि यह देश, मानवता के छठे हिस्से का घर है, यह पूरी दुनिया का तंत्रिका केंद्र, सांस्कृतिक केंद्र और आध्यात्मिक केंद्र है।”
कानून और व्यवस्था के बारे में चिंताओं को लेकर उन्होंने असामाजिक तत्वों द्वारा सार्वजनिक संपत्ति के विनाश और नापाक गतिविधियों की निंदा की। उन्होंने चेतावनी देते हुए कहा, “कल्पना कीजिए कि हमारे जैसे देश में लोग कानून लागू करने वाले अधिकारियों को चुनौती देते हैं। वे सार्वजनिक व्यवस्था को चुनौती देते हैं। अदालत का समन आने पर वे सड़कों पर उतर आते हैं। क्या भारत जैसे देश में काम करने का यही तरीका है? जो व्यक्ति कानून और सार्वजनिक व्यवस्था को चुनौती देता है, उसे जवाबदेह ठहराया जाना चाहिए। यह हमारे लिए कितना शर्मनाक है। जब हम देखते हैं कि सार्वजनिक संपत्ति को नष्ट किया जा रहा है, सार्वजनिक संपत्ति को आग लगाई जा रही है, तो यह कितना दर्द देता है। वे देश के दुश्मन हैं। इन लोगों, इन नापाक तत्वों से असाधारण तरीके से निपटा जाना चाहिए। उन्हें कानून के दायरे में लाया जाना चाहिए। उनके मामलों को तेजी से निपटाया जाना चाहिए। 1.4 बिलियन का यह देश इस तरह के सार्वजनिक उपद्रव, सार्वजनिक संपत्ति के विनाश को बर्दाश्त नहीं कर सकता।” उन्होंने आगे कहा, “दुनिया हमारी ट्रेनों की सराहना कर रही है। एक के बाद एक नयी ट्रेनें चलाई जा रहीं हैं, लेकिन कुछ ऐसे लोग हैं, जो उन पर पत्थरबाजी करते हैं। वे समाज के अवांछित तत्व हैं। उन्हें हमारा सम्मान नहीं मिलना चाहिए। उन्हें अलग-थलग किया जाना चाहिए, उनका सटीकता से पता लगाया जाना चाहिए और उनसे सख्ती से निपटा जाना चाहिए।”
भारत को दुनिया का आध्यात्मिक केंद्र बताते हुए, उपराष्ट्रपति ने गांवों के महत्व पर भी जोर दिया और कहा, “हमारा भारत गांवों में बसता है। हमारी प्रगति का रास्ता गांवों से होकर गुजरना है। गांव हमारी जीवन शैली, हमारे लोकतंत्र, हमारी अर्थव्यवस्था को परिभाषित करते हैं। गांवों में ही भारत की धड़कन गूंजती है। इन क्षेत्रों का विकास हमारी सर्वोच्च प्राथमिकता होनी चाहिए। यह हमारा पवित्र कर्तव्य है। उन्होंने कहा, “परिवर्तन का सबसे अच्छा तरीका शिक्षा है।”
उपराष्ट्रपति ने राष्ट्रीय परिवर्तन में पंच प्रण की भूमिका पर जोर दिया। “हमारे राष्ट्रीय परिवर्तन, जो अभी जारी है, की आधारशिला, को गति मिल सकती है यदि सभी व्यक्ति, सभी नागरिक पाँच स्तंभों के प्रति प्रतिबद्ध हों, जिन्हें मैं ‘पंच प्रण’ कहता हूँ। पहला, हमें सामाजिक सद्भाव को बढ़ावा देना चाहिए। हमें सामाजिक सद्भाव में विश्वास करना चाहिए, जो विविधता से परे हो, विविधता को राष्ट्रीय एकता में परिवर्तित करता हो। हमें बच्चों के साथ जमीनी स्तर पर देशभक्ति के मूल्यों का पोषण करके पारिवारिक जीवन, पारिवारिक ज्ञान में विश्वास करना चाहिए। हमें अपने पर्यावरण, पर्यावरण के अनुकूल जीवन शैली, पर्यावरण मूल्यों का ध्यान रखना चाहिए। हमारी पूजा-अर्चना को देखें, वे पर्यावरण के अनुकूल हैं। हमें यकीन है कि हमारे पास एक-साथ रहने के लिए दूसरी धरती नहीं होगी। हम इस अस्तित्वगत चुनौती को अपने ऊपर हावी नहीं होने दे सकते। हमें पर्यावरण के अनुकूल होना चाहिए। मैं देश के सभी लोगों से स्वदेशी में विश्वास करने का आह्वान करता हूँ। स्थानीय के बारे में मुखर बनें। इससे रोजगार को बढ़ावा मिलेगा। इससे बहुमूल्य विदेशी मुद्रा की बचत होगी। आप इस पर विश्वास करेंगे। और अंत में, हमारा संविधान हमें मौलिक अधिकार देता है। लेकिन हमें मौलिक कर्तव्यों पर ध्यान देना चाहिए। हमारे कर्तव्य पवित्र हैं। वे ज्यादा कुछ नहीं लेते। उन्होंने कहा, “यदि आप मौलिक कर्तव्यों को पढ़ेंगे, तो आप उनका पालन करने के लिए प्रेरित होंगे।”
कॉरपोरेट जगत से अपील करते हुए उपराष्ट्रपति ने उन्हें कॉरपोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व (सीएसआर) के माध्यम से धार्मिक संस्थानों का सक्रिय रूप से समर्थन करने के लिए प्रोत्साहित किया। उन्होंने कहा, “मैं कॉरपोरेट जगत, भारतीय कॉरपोरेट जगत से आग्रह करता हूं कि वे आगे आएं और अपने सीएसआर फंड से अवसंरचना विकास, स्वास्थ्य, शिक्षा तथा ऐसे धार्मिक संस्थानों के आसपास अवसंरचना के लिए उदारतापूर्वक योगदान दें, क्योंकि ये धार्मिक संस्थान पूजा स्थलों से परे हैं। वे हमारी संस्कृति के केंद्र हैं। इससे हमारे युवाओं, हमारे बच्चों में सांस्कृतिक मूल्यों को आत्मसात करने में मदद मिलेगी। ये सांस्कृतिक मूल्य इस देश को अन्य देशों से अलग बनाते हैं।”
इस अवसर पर सांसद बृजेश चौटा, श्री क्षेत्र धर्मस्थल ग्रामीण विकास परियोजना के अध्यक्ष डी. वीरेंद्र हेगड़े, ज्ञानविकास कार्यक्रम की अध्यक्ष हेमावती वी. हेगड़े, एसकेडीआरडीपी के ट्रस्टी डी. सुरेंद्र कुमार, एसडीएमई सोसायटी के सचिव डी. हर्षेंद्र कुमार और अन्य गणमान्य व्यक्ति भी उपस्थित थे।